Mung ki kheti : भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मूंग का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें 24 प्रतिशत प्रोटीन के साथ-साथ फाइबर और लौह तत्व भी काफी मात्रा में होते हैं। जल्दी पकने वाली और गर्मी प्रतिरोधी किस्मों के विकास के कारण जायद में मूंग की खेती लाभदायक हो रही है। उन्नत मूंग तकनीक के प्रयोग से जायद सीजन में उपज 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाना संभव है।

बुआई का समय
ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई का अनुकूल समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक है। गर्मियों में मूंग की खेती करने से उच्च तापमान और कम आर्द्रता के कारण होने वाली बीमारियों और कीटों का प्रकोप कम हो जाता है। लेकिन यदि बाद में बुआई की जाए तो गर्म हवा और बारिश से फलियां खराब हो जाती हैं। जल्दी पकने वाली किस्मों को अप्रैल में लगाना सबसे अच्छा होता है।
भूमि एवं तैयारी
मूंग को रेतीली से लेकर काली तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है। चंद्र की खेती के लिए क्षारीय एवं अम्लीय मिट्टी उपयुक्त नहीं होती है। मिश्रित फसल के लिए जुताई का पूर्वाभास करते हुए खेत तैयार करना आवश्यक है। 2-3 जुताई के बाद मिट्टी को देशी हल से दबाना आवश्यक है ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और मिट्टी में नमी बनी रहे।
बुआई दर एवं बीजोपचार
ग्रीष्मकालीन फूलों की बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बीज को 2.5 ग्राम थीरम एवं 1.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। बीज को फफूंदनाशी से उपचारित करने के बाद राइजोबियम कल्चर एवं पीएसबी से उपचारित करें। राइजोबियम कल्चर उपचार के लिए 25 ग्राम गुड़ तथा 20 ग्राम राइजोबियम कल्चर तथा पीएसबी को 50 मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर प्रति 1 किलोग्राम बीज में धीरे-धीरे मिलाकर बीज को छायादार स्थान पर 1-2 घंटे तक सुखाना चाहिए। और इसका उपयोग बुआई के लिए किया जाता है।
बुआई विधि
मूंग को पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 5-7 सेमी तथा बीज को 3-5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए ताकि अच्छा अंकुरण हो सके।
पोषक तत्व प्रबंधन
नियमानुसार मासिक फसलों के लिए प्रति हेक्टेयर 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-60 किलोग्राम फास्फोरस, 20-30 किलोग्राम पोटेशियम और 20 किलोग्राम सल्फर का उपयोग किया जाता है। सभी उर्वरकों को बुआई के समय ही डालना चाहिए।
जल प्रबंधन
जायद में हल्की मिट्टी में 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है, जबकि भारी मिट्टी में 2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि शाखा बनते समय एवं दाना डालते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
जायद फसलों में प्रथम सिंचाई के बाद हाथ से या हाथ से निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल देना चाहिए। दूसरी निराई-गुड़ाई संस्कृति की आवश्यकता के अनुसार की जा सकती है।
रोग प्रबंधन
मूंग में पाउडरयुक्त फफूंदी, मैक्रोफोमिना, सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट और एन्थ्रेक्नोज प्रमुख कवक रोग हैं। इन रोगों से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, उचित बीज उपचार करें, खरपतवारों का शीघ्र नियंत्रण करें और खेत में अच्छी जल निकासी बनाए रखें। तथा बुआई के 30 दिन बाद 500 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 500 लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो 15 दिन बाद छिड़काव दोहराया जा सकता है।
Mung ki kheti kaise kare
इसके अलावा मूंग में पीला मोज़ेक या पीली चितेरी रोग अधिक पाया जाता है। यह एक विषाणुजनित रोग है जो सफेद मक्खी द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलता है। सबसे पहले नई पत्तियों की शिराओं के बीच पीले और हरे कोणीय धब्बे दिखाई देते हैं, बाद में प्रभावित पत्तियों का पीलापन धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और पूरी पत्ती पीली हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी प्रजाति के पौधे लगाएं। खेत में यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रारंभ में कुछ ही रोगग्रस्त पौधे हों
जिन्हें लक्षण प्रकट होते ही उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए तथा सफेद मक्खी की रोकथाम करनी चाहिए। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 150 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड या 400 मिलीलीटर डाइमिथिएट प्रति हेक्टेयर की दर से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा 12-15 दिन बाद छिड़काव दोहराएँ। सफेद मक्खियों को आश्रय देने वाले खरपतवारों को खेत की मेड़ों पर या उसके निकट न रहने दें।
कीट नियंत्रण
मूंग की फसल में काटने और चूसने वाले दोनों तरह के कीड़ों का प्रकोप होता है। मिज में मुख्य हैं पिस्सू, स्केल कीड़े और पत्ती खाने वाले, जिनसे निपटने के लिए 1 लीटर प्रोफेनोफोस या 500 मिली क्लोरेंट्रानिलिट्रिल या 125 ग्राम स्पिनोसैड प्रति हेक्टेयर 2 बार छिड़काव करें।
सफेद मक्खी, थ्रिप्स या थ्रिप्स जैसे रस चूसने वाले कीड़ों के नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 150 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड या 400 मिलीलीटर डाइमिथिएट का छिड़काव करें।
भेदक और रस चूसने वाले दोनों प्रकार के कीड़ों से संक्रमण होने पर प्रोफेनोसाइपर 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करके आप कीड़ों से लड़ सकते हैं।
संग्रहण, थ्रेशिंग और भंडारण
जब चंद्रमा की 85 प्रतिशत फलियाँ पक जाएँ तब कटाई करें। अधिक पकने पर फलियाँ चटक सकती हैं, इसलिए उन्हें समय पर एकत्र कर लेना चाहिए। कटाई के बाद फसल की गहाई करें और बीज को 9% नमी तक सुखाकर भंडारित करें।